पास रह कर जुदाई की तुझ से
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल