कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
बरसात है दिल डस रहा है पानी
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा