दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है