ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने