लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान