कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर