थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो