हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
मुबहम पयाम
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ज़ब्त-ए-गिर्या
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब