बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
मुबहम पयाम
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं