बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
अब वक़्त-ए-सुरूर- ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर