दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
ऐ शाह के ग़म में जान खोने वालो
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
बादल आ के रो गए हाए ग़ज़ब
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो