अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
दुख में हर शब कराहता हूँ या-रब
हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू