ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़