दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़
क्यूँ न फ़िरदौस में दोज़ख़ को मिला लें यारब
ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में