इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की
मौत का एक दिन मुअय्यन है
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
ये लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्ता-जाँ की है
'ग़ालिब' अपना ये अक़ीदा है ब-क़ौल-ए-'नासिख़'