आता नहीं समझ में कि कहते हैं किस को इश्क़
इक पुर्ज़े पर ये हर्फ़ जुदा लिख रखेंगे हम
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(317) Peoples Rate This
इस हवा में कर रहे हैं हम तिरा ही इंतिज़ार
नाज़ुक है मेरा शीशा-ए-दिल इस क़दर कि बस
न पूछ इश्क़ के सदमे उठाए हैं क्या क्या
आशिक़ तो मिलेंगे तुझे इंसाँ न मिलेगा
जाड़ों में है ये रंग कि अपने लिहाफ़ के
तड़ावे के लिए है ख़्वान पोश महर-ओ-मह नादाँ
होवे न अज़ाब उस पे कभी जिस के पस-ए-मर्ग
क्या मैं जाता हूँ सनम छुट तिरे दर और कहीं
रही हमेशा तरक़्क़ी मिरी असीरी को
जब दिल का जहाज़ अपना तबाही में पड़े है
आसमाँ को निशाना करते हैं
इक हर्फ़-ए-कुन में जिस ने कौन-ओ-मकाँ बनाया