अपनी तो इस चमन में नित उम्र यूँही गुज़री
याँ आशियाँ बनाया वाँ आशियाँ बनाया
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वो जो आशिक़ हैं अपने हाथों से
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त
मेहनत पे टुक नज़र कर सूरत गर अज़ल ने
दिल में है उस के मुद्दई का इश्क़
ग़ुस्से को जाने दीजे न तेवरी चढ़ाइए
कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम
उस के लहराने में चाल आई न मुतलक़ साँप की
ऐसे डरे हैं किस की निगाह-ए-ग़ज़ब से हम
समझ ले आशिक़ ओ माशूक़ की हम-आग़ोशी
फ़रियाद को मजनूँ की सुने कौन जहाँ हों
ऐ फ़लक किस ने कहा था तुझे ये तो बतला