रातों को आँख उठा के ज़रा देख तो सही
क्या शक्लें जल्वा-गर हैं फ़लक के रवाक़ में
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(303) Peoples Rate This
हम से पाई नहीं जाती कमर उस की ऐ ज़ुल्फ़
क्या अदा से आवे है दीवाना कर के सैर-ए-बाग़
तख़्ता-ए-आब-ए-चमन क्यूँ न नज़र आवे सपाट
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
है माह कि आफ़्ताब क्या है
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई
ऐ इश्क़ तेरी अब के वो तासीर क्या हुई
मुज़्दा ऐ यास कि याँ कुंज-ए-क़फ़स के क़ैदी
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
काम क्या है प नहीं चाहती हिम्मत हरगिज़
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे