हम ने तो उन्हें जामिआ से नक़्द ख़रीदा
फिर किस तरह जाली हुईं अस्नाद हमारी
Jaun Eliya
Gulzar
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वही मक़्बूल लीडर और डिप्लोमैट होता है
राज़-ओ-नियाज़ में भी अकड़-फ़ूँ नहीं गई
पागल लड़की
लबों में आ के क़ुल्फ़ी हो गए अशआर सर्दी में
ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैर
नहले पे दहला
'शाहिद'-साहिब कहलाते हैं मिस्टर भी मौलाना भी
जदीद-तरीन आदमी-नामा
मुनाफ़ा मुश्तरक है और ख़सारे एक जैसे हैं
फ़क़त रंग ही उन का काला नहीं है
बढ़ती रही हर साल जो तादाद हमारी
स्पैशलिस्ट पेन-किलर दे तो कौन सा?