सख़ावत के फ़रिश्ते को उतरता देख कर सूरज
हुआ रू-पोश बादल में, ज़मीं कहने लगी आओ
तलाई, नुक़रई सिक्के उछालो शादमानी के
खुलें औराक़ लोगों पर किताब-ए-ज़िंदगानी के
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
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मैं तुम्हें याद कर रहा था
किस पर पोशीदा और किस पे अयाँ होना था
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
आश्नाई का फ़रिश्ता
वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है
विसाल
पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर
मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुले
दरख़्त मेरे दोस्त
मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा
बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार
महरान, मुझे दो