दिल-ए-आफ़त-ज़दा का मुद्दआ क्या
शिकस्ता साज़ क्या उस की सदा क्या
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ब-क़ैद-ए-वक़्त ये मुज़्दा सुना रहा है कोई
रोज़ कहता हूँ कि अब उन को न देखूँगा कभी
वो आईना हो या हो फूल तारा हो कि पैमाना
महफ़िल-ए-इश्क़ में जब नाम तिरा लेते हैं
है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू
हुस्न के दिल में जगह पाते ही दीवाना बने
तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
जाग और देख ज़रा आलम-ए-वीराँ मेरा
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
रोज़-ए-फ़िराक़ हर तरफ़ इक इंतिशार था
सुकूँ-पज़ीर जुनून-ए-शबाब हो न सका
इदराक ख़ुद-आश्ना नहीं है