Sad Poetry of Imdad Ali Bahr (page 2)
नाम | इमदाद अली बहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Imdad Ali Bahr |
मौत की तिथि | 1878 |
जन्म स्थान | Lucknow |
ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है
कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप
जिस को चाहो तुम उस को भर दो
जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है
जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए
जब कि सर पर वबाल आता है
इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ
इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से
हम ख़िज़ाँ की अगर ख़बर रखते
हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है
हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं
हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब
गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं
फ़ुर्क़त की आफ़त बुरे दिन काटना साल है
दुपट्टा वो गुलनार दिखला गए
दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए
दम-ए-मर्ग बालीं पर आया तो होता
दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ
चूर सदमों से हो बईद नहीं
चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल
चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ
बोलिए करता हूँ मिन्नत आप की
बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का
बद-तालई का इलाज क्या हो
ऐसी कोयल न पपीहे की है प्यारी आवाज़
ऐसे पुर-नूर-ओ-ज़िया यार के रुख़्सारे हैं
अब मरना है अपने ख़ुशी है जीने से बे-ज़ारी है
आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला