तक रहा है ये कोई सोने की चिड़िया आ फँसे
दाम-ए-सुब्हा ले के ज़ाहिद गिर्या-ए-मिस्कीं की तरह
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तू कौन है ऐ वाइज़ जो मुझ को डराता है
ख़ुदा देवे अगर क़ुदरत मुझे तो ज़िद है ज़ाहिद की
मरने की मुझ को आप से हैं इज़तिराबियाँ
ईमान ओ दीं से 'ताबाँ' कुछ काम नहीं है हम को
मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम
अज़ीज़ाँ सितमगर न आया मिरे घर
आतिश-ए-इश्क़ में जो जल न मरें
कई बारी बिना हो जिस की फिर कहते हैं टूटेगा
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस
तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब
दुनिया कि नेक ओ बद से मुझे कुछ ख़बर नहीं