जब मैं रोता हूँ तो अल्लाह रे हँसना उन का
क़हक़हों में मिरे नालों को उड़ा देते हैं
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बोसा-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त दे के गुनहगार किया
ख़ाक में मुझ को मिला के वो सनम कहता है
दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया
साफ़ क़ुलक़ुल से सदा आती है आमीन आमीन
बात भी आप के आगे न ज़बाँ से निकली
तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो
तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची
न पढ़ा यार ने अहवाल-ए-शिकस्ता मेरा
सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ
तू अपने पाँव की मेहंदी छुड़ा के दे ऐ महर
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया