इस बार मिली है जो नतीजे में बुराई
काम आई है अपनी कोई अच्छाई हमारे
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मेरी सूरज से मुलाक़ात भी हो सकती है
दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है
एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए
बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा
एक ना-मौजूदगी रह जाएगी चारों तरफ़
बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं
'ज़फ़र' फ़सानों कि दास्तानों में रह गए हैं
बारिश की बहुत तेज़ हवा में कहीं मुझ को
अपने सोए हुए सूरज की ख़बर ले जा कर
ये साफ़ लगता है जैसी कि उस की आँखें थीं
मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं
मुझे कुछ भी नहीं मालूम और अंदर ही अंदर