उठा सकते नहीं जब चूम कर ही छोड़ना अच्छा
मोहब्बत का ये पत्थर इस दफ़ा भारी ज़ियादा है
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यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए
रफ़्ता रफ़्ता लग चुके थे हम भी दीवारों के साथ
चपातियाँ थीं बंधी पेट पर मगर शब-भर
मुश्किल-पसंद ही सही मैं वस्ल में मगर
वक़्त ज़ाए न करो हम नहीं ऐसे वैसे
एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए
कभी अव्वल नज़र आना कभी आख़िर होना
ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है
कैफ़ियत ही कोई पानी ने बदल ली हो कहीं
बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए
हर नया ज़ाइक़ा छोड़ा है जो औरों के लिए
चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है