मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूँ
अब ये मिट्टी देख खिलौना कैसे बनती है
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दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन
लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या
ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में
वो और मोहब्बत से मुझे देख रहा हो
कोई भी दर न मिला नारसी के मरक़द में
न जाने क्या है कि जब भी मैं उस को देखता हूँ
बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का
मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से
अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'
थक गया एक कहानी सुनते सुनते मैं
ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना