ये कहते हैं सभी इस दौर में हर काम मुमकिन है
मैं ये कहता हूँ ये लेकिन दोबारा हो नहीं सकता
हरा हो सकता है सूखा हुआ इक पेड़ मुमकिन है
मगर शादी-शुदा हरगिज़ कँवारा हो नहीं सकता
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नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते
ये मंज़र देख कर बीवी ने काटा अपने शौहर को
क़ातिल तो क़त्ल कर के कभी का निकल गया
अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
जब हटाई उस ने चेहरे से नक़ाब
मुशायरों में हवा हूट जो मुसलसल मैं
हकला गया जो शादी में दूल्हा तो क्या हुआ
ऐ शैख़ कंघा करना नहीं ज़ेब देता यूँ
मौत से मिलने गले देख तो आशिक़ तेरे
दास्तान-ए-इश्क़ मैं ने जब कही ससुराल में
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में