Love Poetry of Akhtar Saeed Khan

Love Poetry of Akhtar Saeed Khan
नामअख़्तर सईद ख़ान
अंग्रेज़ी नामAkhtar Saeed Khan
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि2006

बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए

ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले

ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी

ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा

ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू

तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है

मुझे अब देखती है ज़िंदगी यूँ बे-नियाज़ाना

किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी

खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ

बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से

ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले

ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है

तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं

तुम हो या छेड़ती है याद-ए-सहर कोई तो है

तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है

सुन रहा हूँ बे-सदा नग़्मा जो मैं बा-चश्म-ए-तर

सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या

सफ़र ही शर्त-ए-सफ़र है तो ख़त्म क्या होगा

निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है

नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है

मुद्दत से लापता है ख़ुदा जाने क्या हुआ

मआल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कुछ भी नहीं

कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं

कहें किस से हमारा खो गया क्या

कभी ज़बाँ पे न आया कि आरज़ू क्या है

दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती

दिल की राहें ढूँडने जब हम चले

दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या

आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा

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