Couplets Poetry (page 4)
अजीब लोग थे ख़ामोश रह के जीते थे
ज़ुबैर रिज़वी
ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'
ज़ुबैर क़ैसर
तिरी तस्वीर उठाई हुई है
ज़ुबैर क़ैसर
तिरा जवाब मिरे काम का नहीं है अब
ज़ुबैर क़ैसर
सुब्ह तक बे-तलब मैं जागूँगा
ज़ुबैर क़ैसर
शिकस्ता ख़्वाब मिरे आईने में रक्खे हैं
ज़ुबैर क़ैसर
मैं उस के जाल में आऊँगा देखना 'क़ैसर'
ज़ुबैर क़ैसर
फिर भी क्यूँ उस से मुलाक़ात न होने पाई
ज़ुबैर फ़ारूक़
इतनी सर्दी है कि मैं बाँहों की हरारत माँगूँ
ज़ुबैर फ़ारूक़
हर तरफ़ फैला हुआ था बे-यक़ीनी का धुआँ
ज़ुबैर फ़ारूक़
है हर्फ़ हर्फ़ ज़ख़्म की सूरत खिला हुआ
ज़ुबैर फ़ारूक़
एक इक कर के बहुत दुख साथ मेरे हो लिए
ज़ुबैर फ़ारूक़
कितने चेहरों के रंग ज़र्द पड़े
ज़ुबैर अमरोहवी
हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना
ज़ुबैर अमरोहवी
ग़म तो ग़म ही रहेंगे 'ज़ुबैर'
ज़ुबैर अमरोहवी
एक ही घर के रहने वाले एक ही आँगन एक ही द्वार
ज़ुबैर अमरोहवी
वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए
ज़ुबैर अली ताबिश
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
ज़ुबैर अली ताबिश
ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
ज़ुबैर अली ताबिश
तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
ज़ुबैर अली ताबिश
शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
ज़ुबैर अली ताबिश
पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा
ज़ुबैर अली ताबिश
कोई तितली निशाने पर नहीं है
ज़ुबैर अली ताबिश
किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
ज़ुबैर अली ताबिश
इस दर का हो या उस दर का हर पत्थर पत्थर है लेकिन
ज़ुबैर अली ताबिश
हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है
ज़ुबैर अली ताबिश
बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
ज़ुबैर अली ताबिश
बस मैं मायूस होने वाला था
ज़ुबैर अली ताबिश
अपना कंगन समझ रहे हो क्या
ज़ुबैर अली ताबिश
अब तलक उस को ध्यान हो मेरा
ज़ुबैर अली ताबिश