Couplets Poetry (page 617)
ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए
आग़ा अकबराबादी
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
आग़ा अकबराबादी
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
आग़ा अकबराबादी
कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
आग़ा अकबराबादी
किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र
आग़ा अकबराबादी
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो
आग़ा अकबराबादी
जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग
आग़ा अकबराबादी
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
आग़ा अकबराबादी
इन परी-रूयों की ऐसी ही अगर कसरत रही
आग़ा अकबराबादी
हम न कहते थे कि सौदा ज़ुल्फ़ का अच्छा नहीं
आग़ा अकबराबादी
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
आग़ा अकबराबादी
हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे
आग़ा अकबराबादी
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
आग़ा अकबराबादी
देखो तो एक जा पे ठहरती नहीं नज़र
आग़ा अकबराबादी
देखिए पार हो किस तरह से बेड़ा अपना
आग़ा अकबराबादी
दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही
आग़ा अकबराबादी
दर-ब-दर फिरने ने मेरी क़द्र खोई ऐ फ़लक
आग़ा अकबराबादी
बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी
आग़ा अकबराबादी
तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की
आग़ा निसार
दानिस्ता हम ने अपने सभी ग़म छुपा लिए
आफ़ाक़ सिद्दीक़ी
वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
आदिल रज़ा मंसूरी
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर
आदिल रज़ा मंसूरी