Hope Poetry of Farhat Ehsas (page 2)

Hope Poetry of Farhat Ehsas (page 2)
नामफ़रहत एहसास
अंग्रेज़ी नामFarhat Ehsas
जन्म की तारीख1952
जन्म स्थानDelhi

जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल

जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से

जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

घर में चीज़ें बढ़ रही हैं ज़िंदगी कम हो रही है

इक हवा सा मिरे सीने से मिरा यार गया

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

दोनों का ला-शुऊ'र है इतना मिला हुआ

दिनी हैं सब कोई राती नहीं है

चराग़-ए-शहर से शम-ए-दिल-ए-सहरा जलाना

बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला

बीमार हो गया हूँ शिफा-ख़ाना चाहिए

बादल इस बार जो उस शहर पे छाए हुए हैं

औरों का सारा काम मुझे दे दिया गया

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन

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