ख्वाब Poetry (page 65)
साहिल पे रुक के सू-ए-समुंदर न देखिए
आज़ाद गुलाटी
मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है
आज़ाद गुलाटी
किस ने सदा दी कौन आया है
आज़ाद गुलाटी
ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
आज़ाद गुलाटी
बहुत लम्बा सफ़र तपती सुलगती ख़्वाहिशों का था
आज़ाद गुलाटी
आने वाले हादसों के ख़ौफ़ से सहमे हुए
आज़ाद गुलाटी
इबारतें चमक रही हैं दिल में तेरे प्यार की
आयुष चराग़
कुछ और हो भी तो राएगाँ है
अय्यूब ख़ावर
सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया
अय्यूब ख़ावर
हवा के रुख़ पे रह-ए-ए'तिबार में रक्खा
अय्यूब ख़ावर
हरीम-ए-हुस्न से आँखों के राब्ते रखना
अय्यूब ख़ावर
घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच
अय्यूब ख़ावर
चराग़-ए-क़ुर्ब की लौ से पिघल गया वो भी
अय्यूब ख़ावर
आ जाए न रात कश्तियों में
अय्यूब ख़ावर
हम तसव्वुर में उन के उभरने लगे
अय्यूब जौहर
दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं
अयाज़ झाँसवी
उस निगाह-ए-नाज़ ने यूँ रात-भर तज्सीम की
औरंगज़ेब
अश्क को दरिया बनाया आँख को साहिल किया
औरंगज़ेब
आज शब-ए-मेराज होगी इस लिए तज़ईन है
औरंगज़ेब
आइना है ख़याल की हैरत
औरंगज़ेब
आ कर उरूज कैसे गिरा है ज़वाल पर
औरंगज़ेब
नाव तूफ़ान में जब ज़ेर-ओ-ज़बर होती है
औलाद अली रिज़वी
न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए
औलाद अली रिज़वी
वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुई
अतीक़ुल्लाह
आईना आईना तैरता कोई अक्स
अतीक़ुल्लाह
हमारे मा-बैन
अतीक़ुल्लाह
मुझ से बे-ज़ारो न यूँ संग से मारो मुझ को
अतीक़ुल्लाह
क्या तुम ने कभी ज़िंदगी करते हुए देखा
अतीक़ुल्लाह
कुछ और दिन अभी उस जा क़याम करना था
अतीक़ुल्लाह
कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना था
अतीक़ुल्लाह