ख्वाब Poetry (page 64)
जो दौलत तरक़्क़ी-रसाई बहुत है
अज़हर हाश्मी
आज़ुर्दा निगाहों पे ये मंज़र नहीं उतरा
अज़हर हाश्मी
अटूट अंग
अज़हर गौरी
मंज़र-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ है दम-ए-रुख़्सत-ए-ख़्वाब
अज़हर फ़राग़
आँख खुलते ही जबीं चूमने आ जाते हैं
अज़हर फ़राग़
तिरे ब'अद कोई भी ग़म असर नहीं कर सका
अज़हर फ़राग़
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
अज़हर फ़राग़
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
अज़हर फ़राग़
धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं
अज़हर फ़राग़
शब भर आँख में भीगा था
अज़हर अदीब
क़ज़ा का तीर था कोई कमान से निकल गया
अज़हर अदीब
लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है
अज़हर अदीब
क्या तेरा क्या मेरा ख़्वाब
अज़हर अदीब
कल परदेस में याद आएगी ध्यान में रख
अज़हर अदीब
घनेरी छाँव के सपने बहुत दिखाए गए
अज़हर अदीब
अपना जैसा भी हाल रक्खा है
अज़हर अदीब
जब तिरे ख़्वाब से बेदार हुआ करते थे
अज़हर अब्बास
सुब्ह आती है तो अख़बार से लग जाते हैं
अज़ीज़ परीहारी
ख़ुद से अब मुझ को जुदा यूँ ही मिरी जाँ रखना
अज़ीज़ परीहारी
खिड़कियाँ खोल के कैसी ये सदाएँ आईं
अज़ीज़ परीहारी
ये फूल जो मिट्टी के हयूलों से अटा है
अज़ीम कुरेशी
बीच दिलों में उतरा तो है
अज़ीम कुरेशी
तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
अज़ीम मुर्तज़ा
तिरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
अज़ीम मुर्तज़ा
नीम-शब आतिश-ए-फ़रियाद-ए-असीराँ रौशन
अज़ीम मुर्तज़ा
फ़ुग़ाँ से तर्क-ए-फ़ुग़ाँ तक हज़ार तिश्ना-लबी है
अज़ीम मुर्तज़ा
फ़ित्ना-सामाँ ही नहीं फ़ित्ना-ए-सामाँ निकले
अज़ीम मुर्तज़ा
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
आज़ाद गुलाटी
सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था
आज़ाद गुलाटी
सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था
आज़ाद गुलाटी