ख्वाब Poetry (page 62)
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश
अज़ीज़ हामिद मदनी
मुबहम से एक ख़्वाब की ताबीर का है शौक़
अज़ीज़ हामिद मदनी
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
वो साअ'त सूरत-ए-चक़माक़ जिस से लौ निकलती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है
अज़ीज़ हामिद मदनी
सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है
अज़ीज़ हामिद मदनी
नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए
अज़ीज़ हामिद मदनी
मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर
अज़ीज़ हामिद मदनी
लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता
अज़ीज़ हामिद मदनी
क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग
अज़ीज़ हामिद मदनी
ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना
अज़ीज़ हामिद मदनी
हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था
अज़ीज़ हामिद मदनी
इक ख़्वाब-ए-आतिशीं का वो महरम सा रह गया
अज़ीज़ हामिद मदनी
आतिश-ए-मीना नज़र आई हरीफ़ाना मुझे
अज़ीज़ हामिद मदनी
आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए
अज़ीज़ हामिद मदनी
उमीद
अज़ीज़ फ़ैसल
ख़्वाब दरवाज़ों से दाख़िल नहीं होते लेकिन
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
मिरे मिज़ाज को सूरज से जोड़ता क्यूँ है
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
न जाने कौन अपाहिज बना रहा है हमें
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़