फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
सच कहो
रात
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है