ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश