दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
रात
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
एक पौदा और घास
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
एक वक़्त में एक काम
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
नसीहत