रात जब भीग के लहराती है
तितली कोई बे-तरह भटक कर
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
अपने आईना-ए-तमन्ना में
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम