यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
तितली कोई बे-तरह भटक कर
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
एक कम-सिन हसीन लड़की का
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा