आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा