यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अपने आईना-ए-तमन्ना में
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
इक ज़रा रसमसा के सोते में
रात जब भीग के लहराती है
एक कम-सिन हसीन लड़की का