हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
एक कम-सिन हसीन लड़की का
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर