मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
सर में तकमील का था इक सौदा
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
पास रह कर जुदाई की तुझ से
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
उस के और अपने दरमियान में अब
वो कसी दिन न आ सके पर उसे