जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
पास रह कर जुदाई की तुझ से
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
सर में तकमील का था इक सौदा
साल-हा-साल और इक लम्हा