है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
साल-हा-साल और इक लम्हा
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
सर में तकमील का था इक सौदा
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है