जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
उस के और अपने दरमियान में अब
शर्म दहशत झिझक परेशानी
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
सर में तकमील का था इक सौदा
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
चाँद की पिघली हुई चाँदी में