जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
शर्म दहशत झिझक परेशानी
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
पास रह कर जुदाई की तुझ से
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ