पास रह कर जुदाई की तुझ से
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
उस के और अपने दरमियान में अब
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
शर्म दहशत झिझक परेशानी
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
सर में तकमील का था इक सौदा