वो कसी दिन न आ सके पर उसे
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
सर में तकमील का था इक सौदा
शर्म दहशत झिझक परेशानी
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
साल-हा-साल और इक लम्हा
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल